इंतज़ार
- Raginee K
- Apr 28
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थक कर, हार कर,
एक दिन तुम आओगे,
सब कुछ छोड़, सब कुछ भूल,
मेरी गोद में विश्राम पाओगे।

शायद अब सपने
मुझसे ज़्यादा प्यारे हो गए,
शहरों की दौड़ में
तुम मुझे कहीं खो आए।
फिर भी हर रोज़, हर पल,
मैं यहीं बैठा तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ।

जब खुशियों की लड़ाइयाँ
और ऊँचे उड़ान के नशे से थक जाओगे,
तो ठंडी हवा की ताजगी,
स्वच्छ जल की मिठास याद आएगी।

पेड़ों की छाँव अब भी वहीं होगी,
तुम्हारे कदमों के स्वागत में।
तुम्हारे जूते पहले उतरेंगे,
फिर शहर की सारी थकन, सारे दिखावे।

पानी में डूबकी लगाते ही
पुरानी यादें जाग उठेंगी,
तुम मुझे ढूँढोगे,
और मैं…

मैं यहीं मिलूँगी,
तेरे अपने छोटे से गाँव की तरह,
जो शहरों की दौड़ में कहीं गुम हो गया,
पर तुझसे बिछड़कर कभी रूठा नहीं।

Words & Images : Yogesh Kardile
Muse : K Raginee Yogesh
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